प्रधानमंत्री दूसरे देश के नेताओ से हॉटलाइन पर बात करते है? ये हॉटलाइन क्या है? यह आम दूरसंचार की लाइन से कैसे अलग होता है?
हॉटलाइन
दूरसंचार का वो सुरक्षित माध्यम है जो किसी दो देशों के बीच स्थापित किया
जाता है। यह एक साधारण फ़ोन लाइन होती है, पर इसका बहुत महत्व होता है
क्योंकि इस पर दो देशों के सर्वोच्च नेता (प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति)
एक दूसरे से बात करते है।
चित्र : शीत युद्ध के समय स्थापित मॉस्को-वाशिंगटन हॉटलाइन। ध्यान दें इसमें नंबर डायल नही है।
हॉटलाइन का इतिहास :
द्वितीय
विश्वयुद्ध के समय अमेरिका और ब्रिटेन के बीच एक हॉटलाइन काम कर रही थी।
यहाँ से युद्ध की महत्वपूर्ण जानकारी एक दूसरे से साझा की जाती थी।
द्वितीय
विश्व युद्ध के बाद जब अमेरिका और रूस के बीच शीत युद्ध आरंभ होता है तो
20 जून 1963 मॉस्को-वाशिंगटन हॉटलाइन स्थापित की जाती है। ये वो समय था जब
शीत युद्ध अपने चरम पर था और क्यूबा मिसाइल संकट सिर पे मंडरा रही थी।
चित्र : विभिन्न देशो के हॉटलाइन!
हॉटलाइन की विशेषताएं :
- दूसरसंचार की यह लाइन मिलिट्री ग्रेड encrypted होती है और दो राजधानियों को जोड़ती है।
- रिसीवर उठाते ही दूसरे कार्यालय को फोन जाता है। मॉस्को-रूस के बीच जो फ़ोन लाइन थी उसमें डायल भी नही था क्योंकि उस लाइन से सिर्फ एक नंबर पर ही कॉल जाती थी। वैसे उसे नंबर कहना भी अज़ीब होगा।
- इसका इस्तेमाल युद्ध और विकट आपदा की स्थिति में किया जाता है। जैसे परमाणु परीक्षण, आतंकवाद, सीमा पर क्लेश आदि स्थितियों में।
- यह हॉटलाइन दोनों देशों की आम सहमति/संधि से बनाया जाता है क्योंकि युद्ध के समय भी नेताओ में बात होती रहनी चाहिए। यह एक जिम्मेदार देश की पहचान है! (कृपया पाकिस्तान के संदर्भ में अर्थ न खोजें)
- इसमे रियल टाइम अनुवाद की सुविधा भी होती है।
भारत की हॉटलाइन :
नई दिल्ली-इस्लामाबाद हॉटलाइन :
नई दिल्ली की एक हॉटलाइन इस्लामाबाद, पाकिस्तान से जुड़ी है। इसे 1971 के
युद्ध के बाद स्थापित किया गया। भारत और पाकिस्तान के युद्ध लड़ चुके है और
हमेशा तनाव का माहौल रहता है। ऐसे में यह हॉटलाइन तनाव कम करने का काम करती
है। भारत और पाकिस्तान इस हॉटलाइन पर कई बार बात कर चुके है!
नई दिल्ली-बीजिंग हॉटलाइन : नई
दिल्ली की एक हॉटलाइन बीजिंग से जुड़ने की भी बात चल रही है पर अभी तक इस
पर कुछ ठोस नही हो पाया है। एक DGMO स्तर की हॉटलाइन स्थापित करने की बात
अभी भी टेबल पर ही है। डोकलाम जैसे विवाद को देखते हुए यह ज़रूरी भी है।
नई दिल्ली-वाशिंगटन हॉटलाइन : जनवरी 2015 में
बराक ओबामा भारत के गणतंत्र दिवस पर मुख्यातिथि बन कर आये थे। तभी यह
फैसला हुआ कि भारत और अमेरिका के बीच भी एक हॉटलाइन होनी चाहिए। अगस्त 2015
तक यह हॉटलाइन स्थापित हो गई। इसमे क्रेडिट प्रधानमंत्री मोदी की ओबामा से
दोस्ती को भी जाता है। भारत वो चौथा देश है जिसकी अमेरिका के राष्ट्रपति
के साथ हॉटलाइन है।
इसी तरह दिल्ली- मास्को के बिच भी एक हॉटलाइन है!
हॉटलाइन
का होना वैश्विक राजनीति में बहुत महत्व रखता है। किसी देश के बीच हॉटलाइन
होना उन देशों की गंभीरता को दर्शाता है कि वो बात करने के लिए तैयार हैं।
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