विद्युत वोल्टेज 11 के गुणज में ही क्यों होता है जैसे 110v, 220v, 440v, 1100v 2200v, 11000v?


एक प्रत्यावर्ती धारा तरंग का फॉर्म फैक्टर औसत मान (तरंग पर सभी बिंदुओं के निरपेक्ष मान का गणितीय अर्थ) RMS (रूट मीन स्क्वायर) मान का अनुपात है। एक साइनसोइडल तरंग के मामले में, फार्म फैक्टर 1.11 है।

मुख्य कारण कुछ ऐतिहासिक है। पुराने दिनों में जब बिजली लोकप्रिय हो जाती है, तो लोगों को गलतफहमी थी कि ट्रांसमिशन लाइन में लगभग 10% का वोल्टेज नुकसान होगा। इसलिए लोड बिंदु पर 100 प्राप्त करने के लिए उन्होंने आपूर्ति पक्ष से 110 भेजना शुरू कर दिया। यही कारण है। इसका फॉर्म फैक्टर (1.11) से कोई लेना-देना नहीं है।

आजकल जो विचार बदल गया है और हम ४४० V के बजाय ४०० V का उपयोग कर रहे हैं, या २२० V के बजाय 230 V का उपयोग कर रहे हैं।

इसके अलावा वैकल्पिक अब टर्मिनल वोल्टेज के साथ 10.5 kV से 15.5 kV तक उपलब्ध हैं ताकि 11 के गुणकों में उत्पन्न न हो। अब एक दिन जब हमारे पास वोल्टेज सुधार प्रणाली, पावर फैक्टर में सुधार करने वाले कैपेसिटर होते हैं, जो वांछित स्तर तक वोल्टेज को बढ़ा / सही कर सकते हैं, हम 444KV के बावजूद 400KV जैसे सटीक वोल्टेज का उपयोग कर रहे हैं

क्या गाड़ियों के टायरों में हवा की जगह पानी भरा जा सकता हैं?

हां. गाड़ियों के टायरों में हवा की जगह पानी भरा जा सकता है, लेकिन सभी गाड़ियों में नहीं.

ट्रैक्टर के टायरों में लगभग 60–80% तक पानी भरा जा सकता है और इसे बैलैस्टिंग ऑफ़ टायर्स (Ballasting of Tyres) कहते हैं.

कई बार कर्षण (Traction) हेतु भार बढ़ाने के लिए या किसी एग्रीकल्चरल मशीन के गुरुत्व केंद्र को जमीन के और करीब पहुंचाने के लिए टायरों में पानी भरा जाता है. पानी ट्यूब वाले और ट्यूबलैस – दोनों ही प्रकार के टायरों में भरा जा सकता है.

एग्रीकल्चरल टायरों के वॉल्व “एयर और वॉटर टाइप” के होते हैं. इस चित्र में आप देख सकते हैं कि टायर में अधिकतम 75% तक पानी भर दिया गया है. इस पानी में कभी-कभी एंटीफ़्रीज़ भी मिलाया जाता है. बहुत ठंडे प्रदेशों में, जहां तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है, वहां ग्लाइकॉल आधारित एंटीफ़्रीज़ का उपयोग करना ज़रूरी हो जाता है.

“एयर और वॉटर टाइप” के वॉल्व इस प्रकार के होते हैं कि पानी भरते समय टायर के भीतर की हवा एक दूसरे छेद से निकल जाती है. ज़रूरी मात्रा में पानी भरने के बाद टायर में हवा का प्रेशर और कठोरता बनाने के लिए हवा भर दी जाती है.

ट्रेक्टरों को कभी-कभी पानी से भरे खेतों में काम करना पड़ता है जहां जमीन बहुत फिसलन भरी हो जाती है. ऐसे में हवा भरे टायर जमीन पर फिसलने या एक ही स्थान पर घूमने लगते हैं. ऐसे में कर्षण को बढ़ाने के लिए टायर को बदले बिना उसके भार को बढ़ाना ज़रूरी हो जाते है. टायर के भार को या तो किसी भारी वजन को टायर के साथ बांधकर या टायर में पानी भरकर बढ़ाया जा सकता है. टायर के साथ वजन को बांधना कठिन काम है. इसमें बहुत समय और मेहनत लगती है. इसलिए वॉटर बैलेस्टिंग अर्थात टायर में पानी भरना ही सही सहता है. टायर में पानी भर देने से टायर का वजन पढ़ जाता है जिससे कर्षण में वृद्धि होती है. कर्षण का सीधा संबंध घर्षण से है और घर्षण भार पर निर्भर करता है.

बिजली के उत्पादन से लेकर घरों में वितरण तक की व्यवस्था

यह एक विस्तृत जवाब है। आराम से पढ़िएगा। यहां मैं बिजली के उत्पादन से लेकर आपके घर तक बिजली कैसे पहुंचती है उसकी संक्षिप्त जानकारी दे रहा हूं।

बिजली के उत्पादन से लेकर वितरण तक की पूरी व्यवस्था को हम तीन वर्गों में बांट सकते हैं -

  1. बिजली का उत्पादन (Generation of Electric Power)
  2. बिजली का संचरण अथवा प्रेषण (Transmission of Electric Power)
  3. बिजली का वितरण (Distribution of Electric Power)

बिजली का उत्पादन :-

जिस स्थान पर बिजली का उत्पादन होता है उसे हम पावर प्लांट या पावर स्टेशन या पावर हाउस कहते हैं। यह कई प्रकार के होते हैं जैसे थर्मल पावर स्टेशन, हाइड्रो पावर स्टेशन, गैस पावर स्टेशन, डीजल पावर स्टेशन, सोलर पावर स्टेशन आदि। इन सभी पावर स्टेशन में एक बात कॉमन होती है और वह ये कि इन सभी में एक अल्टर्नेटर नामक एक विद्युत मशीन होती है जिसके घूमने पर विद्युत ऊर्जा पैदा होती है। इसे घुमाने के लिए साधारणतः टर्बाइन का उपयोग किया जाता है। टर्बाइन को घुमाने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस ऊर्जा को हम कई स्रोतों से प्राप्त कर सकते हैं। उदाहरण के लिए थर्मल पावर स्टेशन में कोयले को जलाकर पानी को गर्मकर भाप बनाया जाता है और भाप की ऊर्जा से टर्बाइन घूमती है। हाइड्रो पावर स्टेशन में पानी को ऊंचाई से गिराकर टर्बाइन पर दिया जाता है जिससे टर्बाइन घूमती है। सोलर पावर स्टेशन में सूर्य की ऊर्जा का उपयोग कर पानी को गर्म करते हैं और इसी तरह अन्य। नीचे के चित्रों में आप कुछ पावर प्लांट को देख सकते हैं।

ताप विद्युत संयंत्र (Thermal Power Plant)

जल विद्युत संयंत्र (Hydroelectric Power Plant)

नाभिकीय विद्युत संयंत्र (Nuclear Power Plant)

सौर ऊर्जा संयंत्र (Solar Power Plant)

पवन ऊर्जा संयंत्र (Wind Power Plant) आदि।

बिजली का संचरण अथवा प्रेषण :-

इसे दो भाग में बांट सकते हैं - 1. प्राथमिक प्रेषण 2. द्वितीयक प्रेषण

प्राथमिक प्रेषण (Primary Transmission) - पावर स्टेशन में जो बिजली पैदा की जाती है वह पावर स्टेशन की क्षमता के अनुसार सामान्यतः 11000 वोल्ट, 15750 वोल्ट या 21000 वोल्ट तक हो सकती है। हालांकि बिजली को इतने ही वोल्टेज पर आगे नहीं भेजा जाता है। पावर स्टेशन में बिजली पैदा करने के बाद इसे बहुत ही उच्च वोल्टेज पर संचरण लाइनों के माध्यम से आगे भेजा जाता है। यह वोल्टेज सामान्यतः 66000 वोल्ट, 220000 वोल्ट या 400000 वोल्ट या इससे भी ज्यादा हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि कितनी दूरी तक बिजली को भेजना है। इस काम को करने के लिए पावर स्टेशन के अंदर ही स्टेप अप ट्रांसफार्मर होते हैं जो कम परिमाण की बिजली को बहुत उच्च वोल्टेज में बदल देते हैं। उच्च वोल्टेज पर बिजली को भेजने का फायदा यह है कि इससे विद्युत ऊर्जा की हानि बहुत कम होती है। पावर स्टेशन से बिजली के पैदा होने के बाद इसे आगे भेजने के लिए बहुत ऊंचे ऊंचे स्टील से बने टावरों का उपयोग किया जाता है। इन टावरों को आपने खेतों में अवश्य देखा होगा। यहां बिजली को भेजने में जिस स्कीम का उपयोग किया जाता है उसे हम 3 फेज 3 वायर स्कीम (3 phase 3 wire) कहते हैं। इसका अर्थ है कि इसमें 3 फेज तार होते हैं अर्थात R, Y, B और कुल तीन तार होते हैं। इसे ही प्राथमिक प्रेषण कहते हैं।

द्वितीयक प्रेषण (Secondary Transmission) - प्राथमिक प्रेषण में संचरण लाइनें एक खास सब स्टेशन में आकर मिलती हैं जिन्हें रिसीविंग स्टेशन कहा जाता है। ये रिसीविंग स्टेशन सामान्यतः शहर अथवा किसी क्षेत्र विशेष के बाहर स्थित होते हैं। इन स्टेशनों में बड़े बड़े ट्रांसफार्मर होते हैं जहां से बिजली को स्टेप डाउन किया जाता है। अर्थात प्राथमिक संचरण में जो लाइनें अति उच्च वोल्टेज पर आती हैं उन्हें इन ट्रांसफार्मरों के द्वारा कम वोल्टेज में बदल दिया जाता है। इस वोल्टेज का परिमाण 33000 वोल्ट होता है। अब इस वोल्टेज पर ही संचरण लाइनों को पुनः आगे भेजा जाता है। यहां भी हम 3 फेज 3 वायर स्कीम का उपयोग करते हैं। इसे ही द्वितीयक प्रेषण कहा जाता है।

बिजली का वितरण :-

बिजली के वितरण को भी हम दो भागों में बांट सकते हैं - 1. प्राथमिक वितरण 2. द्वितीयक वितरण

प्राथमिक वितरण (Primary Distribution) - प्राथमिक वितरण के अन्तर्गत 33000 वोल्ट पर आने वाली वितरण लाइनों को पुनः एक सब स्टेशन में भेजा जाता है जहां इन्हें पुनः स्टेप डाउन ट्रांसफार्मरों की सहायता से 11000 वोल्ट में बदल दिया जाता है। ऐसे सब स्टेशन शहर में ही स्थित होते हैं। इन 11000 वोल्ट के तारों को आपने अपने शहर में देखा भी होगा जो थोड़ी थोड़ी दूरी पर स्थित पोलों से होकर हर सड़क और गली से होकर गुजरते हैं। यहां भी 3 फेज 3 वायर स्कीम का उपयोग होता है। इसे ही प्राथमिक वितरण कहते हैं।

द्वितीयक वितरण (Secondary Distribution) - अब तक आप यह जान चुके हैं कि पावर स्टेशन से होकर बिजली आपके शहर/कॉलोनी तक कैसे आती है। अब आपके घरों में बिजली दी जानी है। आपने देखा होगा कि आप सीधे ही 11000 वोल्ट के तार से बिजली नहीं लेते हैं। ये सभी 11000 वोल्ट पर दौड़ने वाले तार पुनः एक ट्रांसफार्मर पर आकर समाप्त होते हैं जहां इन्हें 440 वोल्ट में बदल दिया जाता है। ऐसे ट्रांसफार्मर को आप आसानी से अपने आस पास देख सकते हैं। इन्हें पोल मांउटेड सब स्टेशन कहा जाता है। इन ट्रांसफार्मरों से चार तार बाहर निकलते हैं। अर्थात द्वितीयक वितरण का स्कीम 3 फेज 4 वायर (3 phase 4 wire) होता है। इसका अर्थ यह है कि इसमें तीन फेज तार होते हैं और एक न्यूट्रल तार होता है यानी कुल चार तार होते हैं। अब आपको अपने घर में सप्लाई लेनी है तो आप तीन फेज तारों में किसी एक फेज तार और एक न्यूट्रल तार का उपयोग कर सकते हैं। अर्थात आपके घर कुल दो ही तार आते हैं। न्यूट्रल तार सभी घरों में कॉमन होता है। मजे की बात यह है कि ट्रांसफार्मर से 440 वोल्ट की सप्लाई आती है लेकिन आप अपने घर में केवल 230 वोल्ट का ही उपयोग करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि एक फेज और एक न्यूट्रल तार के बीच का वोल्टेज 230 वोल्ट होता है और दो फेज तारों के बीच का वोल्टेज 440 वोल्ट होता है।

अब तक की पूरी व्यवस्था को आप इस चित्र में देख सकते हैं।

इस पूरी व्यवस्था में तीन बातें महत्वपूर्ण हैं-

  1. मैंने बिजली के उत्पादन से लेकर आपके घर तक जो भी स्कीम बताई है वह सभी AC में होती है। इसमें कहीं पर भी DC का इस्तेमाल नहीं किया जाता।
  2. यह बहुत ही संक्षिप्त रूप में मैंने आपको बताया है। वास्तविक व्यवस्था बहुत ही जटिल है।
  3. यहां मैंने जितने भी वोल्टेज के मानों का उपयोग किया है वे सभी स्टैंडर्ड मान हैं जो ज्यादातर उपयोग होते हैं। किसी विशेष क्षेत्र में ये अलग भी हो सकते हैं।

आकाशीय बिजली का निर्माण कैसे होता है? बादल और धरती के बीच में बहुत दूरी होती है फिर बिना किसी माध्यम के बिजली कैसे गिरती है? How does celine power build? There is a lot of distance between the cloud and the earth, then how does the power fall without any medium?

स्टेटिक चार्ज तो सुना ही होगा सबने या महसूस किया होगा, बचपन में हम गुब्बारे को अपने शरीर या कपड़ों से रगड़ते थे और फिर वह गुब्बारा काग़ज़ या अन्य पदार्थों को अपनी तरफ खीच लेता था या कभी कभी हम किसी मेटल या अन्य किसी चीज़ को छू लेते हैं तो एक कंपन महसूस करते हैं उसे ही स्टेटिक चार्ज बोलते हैं जब एक नेगेटिव चार्ज का पॉज़िटिव चार्ज से घर्षण होता है।

सबको यह तो पता ही होगा कि जब तापमान गर्म होता है तो समुंद्र या नदियों को पानी वाष्प बन ऊपर बादलों का रूप ले लेता है या इकठ्ठा होने लगता है, जैसे यह नमी ऊपर जाती है शीत लहर के चलते कुछ कण क्रिस्टल का रूप ले लेते हैं और कुछ गर्म वायु के कारण बूंदों का रूप ऐसे ही अनगिनत बादलों का निर्माण होता हैं जब क्रिस्टएल और बूंदे या कहिए कि (negative and positive particles)आपस में टकराती है तो आवाज़ के साथ घर्षण करती हैं जिससे तड़ित प्रवाह होता है।

बादलों में उपस्थित जो कण धनात्मक आवेश ( पॉज़िटिव चार्ज) के होते हैं वो ऊपर चलें जाते है और ऋणात्मक आवेश (नेगेटिव चार्ज) वाले नीचे हो जाते है और ऐसे सभी बादलों में होता है और गर्म हवा जब शीत लहर से टकराती हैं तो धनात्मक आवेश बादल ऋणात्मक आवेश वाले बादल से टकराते अगर सरल भाषा में बोलू तो नेगेटिव चार्ज वाले बादल पॉज़िटिव चार्ज वाले बादल से जब रगड़ते हैं तो स्टेटिक ऊर्जा उत्पन्न होती हैं साथ में गर्म ठंडे वायु के कण आपस में दवाब के साथ टकराते हैं जिससे घर्षण पैदा होता हैं जो आवाज़ करता हैं और जिससे बिजली कड़कती है।

बेशक बादलों और पृथ्वी के बीच में बहुत दूरी है किन्तु स्टेटिक चार्ज एक शक्तिशाली विद्युतीय चुंबक का काम करती है इसलिए जब बादलों में नीचे बैठे नेगेटिव चार्ज धरती पर किसी भी पॉज़िटिव चार्ज से आकर्षित होते है तो उनमें घर्षण पैदा होता है और स्टेटिक चार्ज उपन्न करते हैं और साथ में वायुमंडल में गर्म और शीत लहरों के अत्यधिक दवाब के कारण नमी के ये छोटे छोटे कण वायुमंडल में फ़ैल जाते है जिससे बिजली उत्पन होती है और इसे ही तड़ित या फ़िर बिजली कड़कना बोलते है।

कभी किसी बहुत गर्म तवे के ऊपर पानी डालकर देखें आवाज़ के साथ चिंगारी निकलती है।

प्रकाश का वेग ध्वनि के वेग से बहुत अधिक है इसलिए हमे बिजली पहले दिखाई देती हैं फ़िर सुनाई पड़ती है।।

यदि मैं 12 बोल्ट बैटरी के दोनों टर्मिनलों को एक साथ छूता हूँ तो क्या होगा?

कुछ नहीं हुआ। मैं अभी जिंदा हूं ,क्यूँ? चलो करंट को मापते हैं। (मेरी दाहिनी उंगली नकारात्मक मीटर की जांच पर है, और मीटर 2 एमए सीमा पर सेट है)

0.026 एमए; यह 26 माइक्रो एम्प्स है, जो कि 12V × 26 =A = 312 माइक्रो वाट बिजली मेरे शरीर में (गर्मी के रूप में) loss रही है।

312 माइक्रो वाट से कुछ भी जलने वाला नहीं है।

आप आश्चर्यचकित हो सकते हैं कि 1000 एम्प्स प्रदान करने में सक्षम बैटरी केवल 26 माइक्रो एम्प्स ही क्यों प्रदान करती है। प्रतिरोध के कारण, जैसा कि अन्य ने कहा है। त्वचा प्रतिरोध बहुत अधिक है, और वर्तमान वोल्टेज प्रतिरोध द्वारा विभाजित है।

अब, अगर मैं बैटरी के पार एक रिंच (अनिवार्य रूप से 0 ओम प्रतिरोध के साथ) लगता हूं, तो वर्तमान 0 (ओम) या अनंत धारा से विभाजित 12 (वोल्ट) होगा। बेशक, यह संभव नहीं है, लेकिन बैटरी वह सब कुछ प्रदान करेगी जो वह कर सकता है। यह संभवतः लगभग 1000 एम्प्स होगा। तो 12 (वोल्ट) बार 1000 (एम्प्स) 12,000 वाट है। यह बहुत शक्ति है, और आसानी से रिंच के कुछ हिस्सों को पिघला देगा। एक मेटल वॉच बैंड या रिंग पिघलने के लिए पर्याप्त गर्म हो सकती है, और अगर बैटरी किसी तरह से दो जगहों पर संपर्क करती है तो आपको गंभीर रूप से जला सकती है।

तो, मेरा जवाब कुछ नहीं होगा क्योंकि आपकी त्वचा का प्रतिरोध 12 वोल्ट पर किसी भी महत्वपूर्ण प्रवाह का संचालन करने के लिए बहुत अधिक है।

साहसिक कार्य के लिए अपनी उंगली पर 9 वोल्ट की बैटरी लगाएं और आप कुछ भी महसूस नहीं करेंगे। उसी बैटरी को अपनी जीभ पर रखें और इससे बहुत ज्यादा करेंट लगेगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि गीली जीभ में त्वचा की तुलना में बहुत कम प्रतिरोध होता है।

रिले क्या होता है तथा कैसे काम करता है?

पावर स्टेशन से बिजली के उत्पादन होने के बाद उसे आपके घर तक पहुंचने से पहले बिजली को बहुत सारी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। हमारा विद्युतीय सिस्टम बहुत ही विशाल और अत्यंत ही जटिल है जिसमें बहुत सारे उपकरण, मशीनें, तारों के जंजाल तथा और भी बहुत कुछ हैं।

क्या आपने कभी सोचा है कि हमने इतना जटिल सिस्टम क्यों बनाया है? दरअसल आज बिजली हमारी भोजन की तरह ही मूल आवश्यकता है। मुंबई जैसे शहर में जहां बिजली का एक पल के लिए भी जाना बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान करा सकता है। इस चौबीस घंटे बिजली की सप्लाई को निर्बाध रूप से जारी रखने के लिए ही हमारा विद्युतीय सिस्टम अत्यंत ही जटिल है।

चूंकि सिस्टम काफी बड़ा और जटिल है तो इसमें गड़बड़ियां होने की संभावनाएं भी बहुत अधिक हैं। विद्युतीय सिस्टम में जब कोई फॉल्ट होता है तो कई बार भयानक आग लग जाती है। कई लोगो को जान से तो हाथ धोना ही पड़ता है साथ ही बिजली की सप्लाई प्रभावित होने से हमारे दैनिक जीवन और आर्थिक जीवन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

अतः हमें अपने सिस्टम को बचाना बहुत जरूरी है। रिले एक ऐसा ही उपकरण है जो कई बार सिस्टम में फॉल्ट होने की स्थिति में सिस्टम को बचाता है।

रिले एक प्रकार का सुरक्षा उपकरण है जो सिस्टम में फॉल्ट का पता लगाता है और संबंधित सर्किट ब्रेकर को कमांड देता है जिससे सिस्टम के जिस भाग में फॉल्ट होता है वह सिस्टम से अलग हो जाता है।

वैसे रिले का काम करना जटिल है। मैं इसे आसान भाषा में समझाता हूं। इसमें एक कॉइल होती है जो करंट या वोल्टेज ट्रांसफार्मर से जुड़ी होती है। जब भी सिस्टम में कोई फॉल्ट होता है तब रिले के कॉइल से बहने वाली करंट का मान बढ़ जाता है। इससे कॉइल ज्यादा चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है। इस चुंबकीय क्षेत्र के कारण एक बल उत्पन्न होता है जिससे रिले के कांटेक्ट आपस में बंद हो जाते हैं। रिले के कांटेक्ट के बंद होने से रिले का ट्रिप सर्किट चार्ज हो जाता है जो सर्किट ब्रेकर को कमांड देता है। इस प्रकार सर्किट ब्रेकर के कांटेक्ट आपस में एक दूसरे से अलग हो जाते हैं। इस प्रकार रिले फॉल्ट की पहचान करता है।

ऊपर दी गई तस्वीर रिले के एक सर्किट की है। इसमें CB सर्किट ब्रेकर को, CT करंट ट्रांसफार्मर को और F फॉल्ट को दर्शाता है।

इस तस्वीर में आप मुझे एक रिले पैनल पर काम करते हुए देख सकते हैं। यहां जिस बटन को मैं प्रेस कर रहा हूं वह एक प्रकार का रिले है।

पानी के अंदर इलेक्ट्रिकल वेल्डिंग कैसे संभव होता है?

इस सवाल का सीधे अर्थो में मतलब ये है कि जब पानी विद्युत का एक अच्छा चालक है तो इस हिसाब से वेल्डिंग करने वाले को करंट लग जाना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं होता है ओर असल में ये वैट वेल्डिंग प्रोसेस पानी के अंदर भी की जाती है।

वेल्डिंग करने के लिए तीन चीजे की जरूरत होती है।

1:- कंट्रोल पैनल, जो कि पानी के बाहर होता है।

2:- वायर यानी तार

3:- इलेक्ट्रोड्स

तो तार ओर इलेक्ट्रोड्स जिनसे पानी में करंट लगने का खतरा होता है वे पूरी तरह से वाटर इंसुलेट होते है या कहिए वाटर प्रूफ होते है। आर्क उत्पन्न करने के लिए हमे एक बंद सर्किट की आवश्यकता होती है, जिसके लिए हम तारो की सहायता से कंट्रोल पैनल को इलेक्ट्रोड और वर्कपीस यानी जिस पर वेल्डिंग करनी है, से जोड़ देते है।

(स्रोत:- गूगल चित्र)

अब वेल्डिंग में कुशल व्यक्ति जो कि कुशल गोताखोर भी है, वह पानी में जाकर वेल्डिंग करता है। वेल्डिंग की प्रकिया में जब इलेक्ट्रोड ओर वर्कपीस पास आते है तो वर्कपीस ओर इलेक्ट्रोड दोनों के परमाणु पॉजिटिव ओर नेगेटिव चार्ज में टूट जाते है ओर दूसरे के आयनों को अप्रोच करते है, जिससे वेल्डिंग की प्रोसेस होती है।

यह प्रक्रिया में काफी एनर्जी निकलती है। यह प्रक्रिया एक्सपर्ट के अलावा कोई भी नहीं करता है क्योंकि कितनी भी सेफ्टी हो पानी के अंदर करंट का डर तो बना ही रहता है।।

क्या वायु में भी विद्युत धारा प्रवाहित हो सकती है ?

एक गत्ते के बोर्ड मे एक पिन घुसाने औऱ एक चाकू घुसाने के अन्तर को उदाहरण मान सकते हैं। वायु एक बहुत अघिक सख्त बोर्ड, पिन को कम धारा औऱ चाकू को उच्च धारा मान सकते हैं।

अगर वायु में भी विद्युत धारा प्रवाहित होने लगे तो क्या हम जीवित रह पाएंगे? जवाब है नहीं। लेकिन हम जीवित हैं, इसका अर्थ है कि वायु से विद्युत धारा प्रवाहित नहीं हो सकती है। लेकिन क्या हो अगर  मैं कहूं कि वायु से भी विद्युत धारा प्रवाहित हो सकती है। आइए जानते हैं किन परिस्थितियों में वायु से विद्युत धारा प्रवाहित हो सकती है।

सामान्य स्थितियों में वायु से विद्युत धारा का प्रवाह संभव नहीं है क्योंकि वायु एक बहुत ही अच्छा कुचालक (insulator) है। परंतु सभी कुचालकों में विद्युत धारा का प्रवाह ना हो सकने की एक निश्चित सीमा होती है। अगर हम इस सीमा से आगे बढ़ जाते हैं तो कुचालक भी चालक बन जाता है। तकनीकी भाषा में इसे कुचालक का Breakdown होना कहते हैं। कुचालकों की इस सीमा अथवा क्षमता को Dielectric Strength के द्वारा व्यक्त किया जाता है। किसी कुचालक के Dielectric Strength का अर्थ यह है कि इकाई मुटाई के किसी कुचालक पर, बिना इसका Breakdown किए अधिकतम कितना वोल्टेज दिया जा सकता है। Dielectric Strength को हम सामान्यतः kV/mm (किलोवोल्ट प्रति मिलीमीटर) में मापते हैं। उदाहरण के लिए रबर का Dielectric Strength 30kV/mm होता है। इसका अर्थ है कि अगर हम 1 mm मुटाई का रबर लें तो अधिकतम 30kV अर्थात 30000 वोल्ट का वोल्टेज इस पर दिया जा सकता है। अगर हम इससे ज्यादा वोल्टेज दें तो यह चालक की तरह व्यवहार करने लगता है।

अब वायु की बात करते हैं। वायु के लिए Dielectric Strength का मान 3kV/mm होता है। अतः सामान्य स्थितियों में 1mm वायु की मुटाई के लिए अधिकतम 3000 वोल्ट हम दे सकते हैं। अगर हम इससे ज्यादा वोल्टेज देते हैं तो वायु से विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है। इसका कारण यह है कि एक सीमा से अधिक वोल्टेज देने पर उत्पन्न विद्युत क्षेत्र इतना अधिक तीव्र होता है कि वह वायु के उदासीन अणुओं से इलेक्ट्रॉनों को बाहर खींच लेता है और वायु आयनीकृत (ionized) हो जाती है। कुछ परिस्थितियां जिन पर वायु का Dielectric Strength निर्भर करता है, निम्न हैं

  • अगर वायु अत्यधिक आर्द्र हो तो इसका Dielectric strength कम हो जाता है।
  • अत्यधिक तूफानी तथा बरसात के समय भी वायु का Dielectric Strength कम हो जाता है।

वायु से विद्युत धारा प्रवाहित होने का सबसे अच्छा उदाहरण transmission lines में होने वाला corona effect है।