फायर सेफ्टी के बारे में बेसिक जानकारी

आजकल फायर सेफ्टी हमारे दैनिक जीवन में बहुत उपयोगी है। और इसकी जानकारी बहुत जरूरी है यह किसी फायर ऑफिसर यह फायर tender  के लिए तो  अधिक जरूरी है परंतु हमारे दैनिक जनजीवन व हमारे फैमिली में इसकी अवस्था काफी पड़ती है और इसकी जानकारी होना बहुत जरूरी है ताकि दुर्घटना के दौरान हम बी सी चीजों का पालन के द्वारा इस को बढ़ने से रोक सकें वह इसको बड़ी दुर्घटना होने से बचा सके उसको अधिक जानकारी के लिए आप नीचे दी गई वीडियो में विस्तार से देख सकते हैं एनिमेशन के द्वारा।



                                                                    

                                                                    Class of Fire


CLASS

Type of Fire

Type of Fire Extinguisher

Class A

Fires involving Paper, Wood, Textile, Packing materials and the like.

Water, foam, ABC dry power and halocarbons.

Class B

Fires involving Oil, Petrol, Solvent, Grease, Paints, Celluloid and the like.

Foam, dry powder, clean agent and carbon dioxide extinguishers

Class C

Fires involving Electrical Hazards, Motor Vehicle Gaseous substance under pressure.

Dry powder, clean agent and carbon dioxide extinguishers

Class D

Fires involving Chemicals, Metal and active like

Magnesium ,titanium

Extinguishers with special dry powder for metal tires


    

Area covered by Fire Extinguisher (NBC)

Type of Fire Extinguishers

Coverage (Floor) Area

Water/ Sand Bucket

100 sq.mt.

Sprinklers

6 sq.mt.

Extinguishers (9 Liter)

600 sq.mt.

Heat Detectors

16 sq.mt.

Hydrant Riser (Outlet 100 mm dia with landing valve and First aid hose reel)

930 sq.mt

Smoke Detectors

50 sq.mt.




Water Requirement for the Fire Fighting (AS per NBC)

Q = 3000 P

Q = Fire demand in Liters/Minutes

P = Population in Thousands

Note:  The above rate must be maintained at a minimum pressure of 1 to 1.5 kg / cm2 for at least four hours.






Water Requirement for Wet Riser/Down Corner System (As per NBC -TABLE 4)

Residential Buildings

U.G. Water Storage Tank Static

Terrace Tank

15 m to 30 m

50,000 lts

10,000 lts

30 m to 45 m

1,00,000 lts

20,000 lts

Above 45 m

2,00,000 lts

40,000 lts







Water Requirement for Wet Riser/Down Corner System (As per NBC -TABLE 5)

Business Building

U.G. Water Storage Tank Static

Terrace Tank

15 m to 30 m

100000 lts (50000 lts if covered area in G.F is less than 300sq.m.)

20,000 lts

30 m to 45 m

20000 lts

20,000 lts

Above 45 m

250000 lts

50,000 lts




Classification of fire Pumps (As per IS 15301)

Pump Size

Location of Pump Installation

450 Liter/Min

Pumps to be installed on the terrace to feed the Down Comer System.

900 Liter/Min

Pumps to be installed on the terrace to feed the Down Comer System.

2280 Liter/Min

Pumps are to be housed in the pump house.

2850 Liter/Min

Pumps are to be housed in the pump house.

4500 Liter/Min

Pumps are to be housed in the pump house.

For special risks 6700 Liter/Min

Pumps are to be housed in the pump house.




Suction and Delivery Pipe Sizes (IS 3844)

Pump Size

Pump Location

Suction

Delivery

450 Liter/min

Terrace

50 mm

50 mm

 900 Liter/min

Terrace

75 mm

50 mm

1400 Liter/min

Terrace

100 mm

100 mm

2280 Liter/min

Fire Pump

150 mm

150 mm

2850 Liter/min

Fire Pump

200 mm

150 mm

4500 Liter/min

Fire Pump

250 mm

200 mm

6700 Liter/min

Fire Pump

250 mm

200 mm





Different Types of Fire Extinguishers for Different Classes of Fires ( IS 2190 )

Type of Extinguisher

IS

Type of Fires

Class A

Class B

Class C

Class D

water type (gas cartridge)

IS 940 , IS 13385

S

NS

NS

NS

water type (stored pressure)

IS 6234

S

NS

NS

NS

mechanical foam type (gas cartridge)

IS 10204, IS 13386

S

S

NS

NS

mechanical foam type (stored pressure)

 IS 14951,IS 15397

S

S

NS

NS

dry powder type (stored pressure)

 IS 13849

S

S

S

NS

dry powder type (gas cartridge)

 IS 2171 , IS 10658

S

S

S

NS

dry powder type for metal fires

 IS 11833

NS

NS

NS

S

carbon dioxide type

 IS 2878, IS 8149

NS

S

S

NS

clean agent gas type

 IS 15683

S

S

S

NS

halon 1211 type

IS 4862 , IS 11108

S

S

S

NS








PRESSURE TESTING OF FIRE EXTINGUISHERS  ( IS 2190 )

Type of Extinguisher

IS

Test Interval (Year)

Test Pressure (kg/cm2)

Pressure Maintained for Min. (kg/cm2)

Water type (gas cartridge)

IS 940

3

35

2.5

Water type (stored pressure)

 IS 6234

3

35

2.5

Water type (gas cartridge)

IS 13385

3

35

2.5

Mechanical foam type (gas cartridge)

 IS 10204

3

35

2.5

Mechanical foam type (stored pressure)

IS 15397

3

35

2.5

Mechanical foam type (gas cartridge)

 IS 13386

3

35

2.5

Mechanical foam type (gas cartridge) 135 liter

 IS 14951

3

35

2.5

Dry powder ( stored pressure)

IS l3849

3

35

2.5

 Carbon dioxide

IS 2878

5

250

2.5

 Clean agent

IS 15683

3

35

2.5

Dry powder (gas cartridge)

IS2171, IS10658

3

35

2.5






LIFE OF FIRE EXTINGUISHERS ( IS 2190)

Type of Extinguisher

Life Time, Year

Water type

10

Foam type

10

Powder type

10

Carbon dioxide

15

Clean agent

10



पूरा विवरण हिंदी में नीचे वीडियो में दिया गया है



बंदूक की गोली में यदि माचिस से आग लगाएं तो क्या होगा

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यह तो हम सभी जानते हैं कि बंदूक की गोली में बारूद भरा होता है और बंदूक का ट्रिगर दबाते ही गोली के पिछले हिस्से पर चिंगारी पैदा होती है। इसी के साथ गोली हवा की स्पीड से छूटती है और अपने टारगेट को खत्म कर देती है। सवाल यह है कि यदि बंदूक ना हो तो क्या केवल कारतूस को माचिस से आग लगाकर चलाया जा सकता है। आइए इस मजेदार प्रश्न का उत्तर जानने की कोशिश करते हैं।

सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (CBI) में 10 साल (2003-2013) सेवाएं दे चुके श्री निशांत मिश्र, दिल्ली बताते हैं कि बंदूक की गोली और कारतूस में बहुत अंतर होता है। कारतूस चलाने पर कारतूस का खोल धमाके से अलग हो जाता है और निशाने पर लगनेवाली चीज़ धातु की नुकीली गोली होती है जो बहुत तेज गति से जाकर निशाने को भेद देती है। धातु की यह गोली बहुत तेज आग में गल जाती है। इसका गलना इस बात पर भी निर्भर करता है कि यह किस धातु या एलॉय से बनी है या आग कितनी तेज धधक रही है।

कारतूस इन चीजों से मिलकर बनता हैः

धातु की गोली (1), खोल या आवरण (2), मसाला या बारूद (3), रिम (4), और प्राइमर (5)।

यदि हम कारतूस को आग में जलाएं तो उसके बहुत रोचक परिणाम होंगे। गोली अपने आप नहीं चल पड़ेगी, ऐसा केवल फिल्मों मे ही होता है।। आग के संपर्क में आने पर प्राइमर और मसाला आग पकड़ लेंगे। प्राइमर विस्फोटक सामग्री से बनता है लेकिन कारतूस में इसकी मात्रा बहुत कम होती है। यह केवल एक छोटा धमाका और चिंगारी उत्पन्न करके मसाले को जलाने का काम करता है।

मसाला जलने पर विस्फोट नहीं करता। यह एक सुनिश्चित दर या गति से जलता है। इसके जलने पर बहुत गरम गैसें निकलती हैं जो बंदूक की नली (बैरल) के अंदर गोली को गति प्रदान करती हैं। गोली के तेज धमाके से नली से बाहर निकलते ही कारतूस का खोल वहीं कुछ दूरी पर गिर जाता है। कारतूस में मसाले का काम वही है जो स्पेस रॉकेट में बूस्टर में भरे ईंधन का होता है।

कारतूस को इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि प्राइमर के जलने पर गैसें तेजी से निकलें। प्राइमर हल्की सी चोट या धमक पहुंचने ऐक्टिव हो सकता है, इसीलिए कारतूसों को हमेशा गत्ते के डिब्बों में बेचा और स्टोर किया जाता है। कारतूसों को आग में फेंक देने पर छोटे-मोटे धमाके होते हैं। कुछ प्राइमर फूटते हैं और गोलियां थोड़ा-बहुत उछलती हैं लेकिन यह वास्तविक गोली चलने जितना खतरनाक नहीं होता।

निष्कर्ष क्या निकला

सरल शब्दों में बात यह है कि गोली की स्पीड कारतूस के मसाले और बंदूक की नाल पर निर्भर करती है। सिर्फ चिंगारी लगने से गोली में स्पीड नहीं आती। यदि आप किसी भी प्रकार से बिना बंदूक की गोली जलाने की कोशिश करेंगे तो वह दीपावली की आतिशबाजी की तरह छोटा सा धमाका करके फट जाएगी। बंदूक से निकली गोली की तरह टारगेट की तरफ दौड़ नहीं लगाएगी।

ट्यूबहीन टायर बनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी?

मेरे कई जवाबों में मैं इस वाक्य को तकिया कलाम की तरह इस्तेमाल कर चुका हूँ, एक बार फिर से कहना चाहूँगा कि, "परिवर्तन संसार का नियम है।"

और खासतौर पर जब ऐसा परिवर्तन बहुत सी अच्छाइयों को अपने साथ लेकर आए तो उसका तो स्वागत ही किया जाना चाहिए।

ट्यूबहीन या ट्यूब विहीन टायर भी कुछ-कुछ ऐसा ही परिवर्तन है जो अपने साथ बहुत सी अच्छाइयाँ लेकर आया है, जिनके बारे में जानकर आप स्वयं ही कहेंगे कि ट्यूब विहीन टायर बनाने की आवश्यकता वाकई थी।

आइए जानते हैं ट्यूब विहीन टायर की आवश्यकता क्यों पड़ी →

पहिये और टायर!!! पहली बात जो हमारे दिमाग में आती है वह है पुरानी भारतीय बैलगाड़ी का पहिया, जो अपने जीवनकाल में कभी भी नष्ट नहीं होता था, और इसे धातु के बैंड से बनाया जाता था जो लकड़ी के पहियों के चारों ओर फिट किए जाते थे ताकि टूट-फुट और घिसाव को रोका जा सके।

फिर इंजन चालित वाहनों की शुरुआत के बाद, टयूब वाले टायर चलन में आए। ट्यूब वाले टायर, मूल रूप से अन्य यौगिक रसायनों के साथ प्राकृतिक रबर और कपड़े से बने होते हैं। वाहन के वजन को सम्हालने एवं पकड़ बनाये रखने के लिए इनमें ट्रेड्स भी होते हैं। ये टायर ज्यादातर न्यूमैटिक (दबाव-वायु) होते हैं, जो हैलोजनयुक्त ब्यूटाइल रबर ट्यूब के साथ आते हैं।

न्यूमैटिक टायरों के पारंपरिक डिजाइनों के लिए एक अलग आंतरिक ट्यूब की आवश्यकता होती है जो गलत टायर फिटिंग या टायर की सतह और अंदरूनी ट्यूब (दबाव वाली हवा की कमी के कारण) के बीच घर्षण की वजह से अत्यधिक गर्मी पैदा होकर टायर फटने की वजह से समस्या पैदा कर सकते हैं।

ट्यूब टायर:

आइए पहले परम्परागत ट्यूब वाले टायरों के बारे में थोड़ा और जान लेते हैं।

ट्यूब प्रकार के टायरों में हवा, एक ट्यूब के अंदर भरी जाती है, जिसके लिए ट्यूब में एक वाल्व फिट जाता है। यदि कोई वस्तु टायर में छेद करती है, तो यह ट्यूब के गुब्बारे की तरह फटने का कारण बन सकती है या यह ट्यूब में एक छेद बनाती है जिसके माध्यम से हवा बाहर निकलने लगती है। हवा रिसने के कारण ट्यूब पिचक जाता है और वाल्व रिम छेद से बाहर निकल जाता है। इस प्रकार रिसने वाली हवा वाल्व छेद के माध्यम से रिम से बाहर निकलने लगती है, जिससे तत्काल ही पूरी हवा बाहर निकल जाती है।

इस प्रकार चलते-चलते हवा के दवाब में अचानक कमी या टायर फट जाना खतरनाक है, क्योंकि यदि गाड़ी की गति थोड़ी भी ज्यादा है तो वो नियंत्रण से बाहर हो कर दुर्घटनाग्रस्त हो सकती है।

ट्यूब विहीन टायर के फायदे:

इसलिए टयूब टायरों की तुलना में, ट्यूब विहीन टायर्स अत्यधिक फायदेमंद हैं, ये अपनी कीमत के बदले उपयोगकर्ता को सुरक्षा, विश्वसनीयता, बेहतर राइड\ हैंडलिंग और बेहतर माइलेज के रूप में बढ़िया सेवा प्रदान करते हैं।

हालांकि ट्यूब विहीन टायर भारतीय सड़कों के लिए थोड़े नए हैं, लेकिन तथ्य यह है कि वे अन्य देशों में पिछली आधी सदी से ज्यादा समय से, और साथ ही हमारे सार्क पड़ोसी देशों में कई दशकों से उपयोग में लाए जा रहे हैं।

टेक्नोलॉजी:

ट्यूब विहीन टायर में कोई ट्यूब नहीं है। टायर और पहिये का रिम हवा को सील करने के लिए एक एयरटाइट कंटेनर का काम करता है क्योंकि ट्यूब विहीन टायर में अभेद्य हेलोब्यूटिल का एक आंतरिक अस्तर होता है। चूंकि यहाँ वाल्व सीधे रिम पर लगाया जाता है, इसीलिए यदि एक ट्यूब विहीन टायर पंचर हो जाता है, तो हवा कील द्वारा बनाए गए छेद से ही निकलती है। अतः यहाँ पंचर होने और हवा निकल कर टायर के पूरी तरह फ्लैट होने के बीच पर्याप्त समय मिलता है।

ट्यूब विहीन टायर की विशेषताएं:

इन टायरों में फटने और अधिक गति पर तेजी से हवा निकलने की घटनाएं अत्यंत दुर्लभ हैं, जिसके परिणामस्वरूप बेहतर सुरक्षा मिलती है और वाहन ड्राइवर के नियंत्रण में रहता है।

जब कोई वस्तु टायर में छेद करती है, तो वहाँ फटने के लिए कोई ट्यूब नहीं होती और वाल्व भी रिम के छेद से बाहर नहीं निकलता है क्योंकि इसको वहाँ फिक्स किया जाता है।

इस प्रकार हवा को बाहर निकलने के लिए कोई आसान रास्ता नहीं मिलता। क्योंकि टायर को इस प्रकार बनाया जाता है कि ज्यादातर मामलों में इसकी रबर इसमें धंसी हुई कील वगैरह को कस कर जकड़ लेती है, फिर भी थोड़ी बहुत हवा तो निकलती ही है, लेकिन ये अपेक्षाकृत धीरे-धीरे रिसती है।

यह टायर रिम के साथ बेहतर सीलिंग के लिए मजबूत किनारों के निर्माण के कारण उच्च गति प्रदर्शन और आरामदायक ड्राइविंग के लिए उपयुक्त है। इसके अलावा ट्यूब टायरों की तुलना में इस टायर के हल्के वजन के कारण बेहतर माइलेज भी मिलता है।

भारत में, शुरू में एसयूवी जैसे सुजुकी ग्रैंड विटारा, शेवरले फॉरेस्टर, फोर्ड एंडेवर और होंडा सीआरवी में ट्यूब विहीन टायर्स का उपयोग किया गया।

फिर होंडा एकॉर्ड, होंडा सिटी, ओपल वेक्ट्रा, मर्सिडीज की सभी कारें, शेवरले ऑप्ट्रा, होंडा सिविक, और यहां तक ​कि फोर्ड आइकॉन और टोयोटा क्वालिस के सभी उच्च संस्करणों में भारतीय सड़कों पर ड्राइविंग के लिए उपलब्ध अतिरिक्त सुविधाओं के तौर पर ट्यूब विहीन टायर का उपयोग किया जाने लगा।

आज की तारीख में लगभग सभी दोपहिया वाहनों एवं इकोनॉमी कार मॉडलों में भी रोड सुरक्षा के विकल्प के तौर पर ट्यूब विहीन टायर ही लगाए जा रहे हैं।

आपके सुझावों का स्वागत है।

धन्यवाद।

बाइक की डिस्क प्लेट में छेद क्यों होते हैं?


ये जो छेद डिस्क ब्रेक में है वो हमेसा से नही होते थे। पुराने जमाने मे जब डिस्क ब्रेक बनाये गए, उस समय डिस्क ब्रेक सिर्फ एक मोटी गोल प्लेट की तरह होते थे। ये प्लेट अभी इस्तेमाल होने वाली प्लेट से ज्यादा मोटी होती थी। लेकिन मोटी प्लेट के साथ समस्या थी कि ये बहुत भारी होती थी और ब्रेक लगाने के बाद बहुत गर्म हो जाया करती थी। यदि आप नीचे वाला चित्र देखे तो समझ जाएंगे कि एक डिस्क ब्रेक कैसे काम करता है -

डिस्क पहिये के साथ जुड़ी रहती है। जब हम ब्रेक लगाते है तो ब्रेकिंग पैड, डिस्क प्लेट पर बल लगाते है। चूंकि ब्रेकिंग पैड डिस्क प्लेट को घिसता है। इसलिए बहुत ज्यादा गर्मी बनती है।

एक मोटी प्लेट जब डिस्क ब्रेक में इस्तेमाल की जाती थी तो प्लेट घर्षण के कारण बनी गर्मी से काफी देर तक गर्म रहती थी। फिर किसी ने सोचा कि क्यों न हम एक पतली प्लेट ले जो जल्दी ठंडी जो जाए। इससे प्लेट का वजन भी कम हो जाएगा। लेकिन इस पतली प्लेट में भी एक समस्या थी कि ब्रेक लगाने पर ये गर्मी से पिघल जाती थी।

इसलिए समस्या का समाधान उस प्लेट में छोटे छोटे छेद बनाकर किया गया। इससे फायदा ये हुआ कि प्लेट का वजन भी कम हुआ और छेद के कारण प्लेट ठंडी भी जल्दी होने लगी। इन छेदो से हवा निकलकर ऊष्मा स्थान्तरण (Heat Transfer) की गति प्लेट के बीच कम करती है।

इन छेद का एक फायदा ये भी है कि बरसात के समय में जब डिस्क ब्रेक में पानी चला जाता है तो उसकी ब्रेकिंग पावर कम हो जाती है। ये छेद उस पानी को भी साफ कर देते है।

यदि पेट्रोल को फ़्रीजर में रख दें तो क्या वह बर्फ़ बन जायेगा?

ठंड के मौसम में गाड़ियों के स्टार्ट होने की समस्या भी यही से आती है। तो देखते हैं कि क्या होता है पेट्रोल के साथ अगर तापमान बदला जाए।

पेट्रोल को अगर आप फ्रिज के फ्रीजर में रखते हैं तो वो नहीं जमेगा। कारण है उसका फ्रीजिंग प्वाइंट।

पेट्रोल का फ्रीजिंग प्वाइंट -40 से -60 डिग्री सेल्सियस होता है, और फ्रिज में इतना कम तापमान नहीं हो पाता है। फ्रीजर का तापमान लगभग 0 से -15 डिग्री सेल्सियस तक होता है।

वहीं अगर देखा जाए तो डीजल में मिक्स पैराफिन का फ्रीजिंग प्वाइंट +10 से 15 डिग्री सेल्सियस तक होता है। क्योंकि डीजल में पैराफिन होता है जो कम तापमान पर ही जम जाता है। तो अगर डीजल को फ्रिज में ही रखा जाए तो वो जम जाएगा। लेकिन डीजल का फ्रीजिंग प्वाइंट -6 से -18 डिग्री सेल्सियस तक होता है।

यहीं कारण होता है जब ठंड का मौसम होता है तो पेट्रोल कार तो आसानी से स्टार्ट हो जाती वहीं जबकि डीजल कार को कई सारे सेल्फ मारने पड़ते हैं।

धन्यवाद!!!!!

दिमाग को वश में करने की सबसे सरल विधि क्या है?

आज में आपको दिमाग को वश में करने की सबसे सरल विधि बताऊंगा जिससे आप अपने दिमाग को 10 अलग अलग जगह एक समय पर लगा सकते है और कोई सा भी कार्य कर सकते है।

वैसे तो यह चमत्कार रुपी कार्य मैडिटेशन से सिद्ध होता है लेकिन आज आपको बहुत सरल और सहज एक शानदार प्रयोग मिलने वाला है।

इसके लिए आपको एक हाथ की सुई वाली घड़ी की आवश्यकता है। एक घड़ी ले और उसके सेकंड वाले सूए पर अपनी नज़र रखे। वह सुया चलता रहेगा और आप उसे टकटकी लगाकर देखते रहे।

बीच में कोई भी सुया आये पर उसे नही देखना। केवल सेकंड वाले सूए को ही लगातार देखते रहे। ऐसा 21 दिन करे। अब 21 दिन के बाद जब वह सुया चले तो उसे घूरते हुए मन में गिनती भी चलती रहे। जैसे जैसे सुया एक एक सेकंड में आगे बढ़ता रहे वैसे वैसे उसको देखना भी है और मन में एक दो तीन जैसे गिनते जाना। इस प्रयोग को रोजाना 9 मिनट कम से कम करना है।

अगले 21 दिन में आप इसमें निपुण हो जाएंगे। अब इस प्रयोग में एक चीज़ और करनी है। आपको अगले 21 दिनों के लिए सुये को भी देखना है, गिनती भी मन में गिननी है और एक कोई सा भी गाना भी गुनगुना लेना है। यह थोड़ा शुरू में कठिन लग सकता है, परन्तु अगले 21 दिन में ये प्रयोग पूरा हो जाएगा।

अब तक 63 दिन हो जाएंगे इस प्रयोग के।

63 दिन में आपकी दिमाग की शक्ति जागृत होगी और आपके दिमाग में उन शक्तियों का भंडार खुलने लगेगा। साथ में आपके दिमाग की क्षमता बहुत उच्च हो जायेगी। मात्र 63 दिन के इस प्रयोग से आपका दिमाग आपके 10 काम एक साथ कर सकता है। अब आप पूछेंगे की इससे फायदा क्या होगा?

फायदा वही है जो योग करने से होगा। आपके दिमाग ने जागरूकता आएगी। जब आप सो जाएंगे तो भी आपका दिमाग का एक हिस्सा जागकर आपके कार्यो को करेगा। जैसे की पढ़ाई, हिसाब किताब इत्यादि। आपकी स्मरण शक्ति तेज़ होगी। साथ साथ आपके दिमाग को कार्य में लाने की क्षमाता और भी बढ़ेगी।

आप वर्तमान में एक समय और एक ही चीज़ सोच सकते है, सोचिये जब आप आने दिमाग को दस जगह लगाकर कार्य करेंगे तो कैसे अद्भुद परिणाम मिलेंगे?

इसके द्वारा आपको पूर्वाभास की सिद्धि भी होने लगेगी। भविष्य की घटना का आभास होने लगेगा।

आप इस प्रयोग को 63 दिन से ज्यादा भी कर सकते है। जैसे जैसे अभ्यास बढेगा वैसे ही आपकी क्षमता।

63 दिन का यह प्रयोग आपके जीवन में अद्भुद परिणाम लेके आता है।

एक बार जरूर प्रयास कीजिये। ये एक ध्यान और त्राटक की विधि ही है। और इसके परिणाम का समय भी पता है।

धन्यवाद।

यदि प्रयोग अच्छा लगा हो तो एक धन्यवाद तो बनता है।

आप मेरे द्वारा बताए गए स्वनुभव यहां भी देख सकते है।


गैस चुला और इंडक्शन में किस में खर्च ज्यादा होता है और कौन बेहतर है


वैसे एक लाईन जवाब है। गैस का चूल्हा बेहतर है, इंडक्शन चूल्हे की अपेक्षा।

अगर आपको ज्यादा जानकारी लेनी है तो आगे पढ़ सकते हैं।

मेरे घर पर भी इंडक्शन चूल्हा है। और ये तब से है जब तक गांव में एनर्जी मीटर नहीं लगे थे। तो तब तो कोई दिक्कत नहीं थी जितनी बिजली आती खाना बनाने के समय तो इसका उपयोग होता था। क्योंकि बिल तो उतना ही जाना था।

जब मीटर लगा तो फिर मैंने बिजली का बिल इंडक्शन चूल्हा जलाने के बाद बहुत ज्यादा ही देखा तो इस पर कुछ रिसर्च की।

वैसे ज्यादा बड़ी रिसर्च नहीं थी, लेकिन मुझे मेरे सवालों के जवाब मिल गए थे। तो आपके सवाल का जवाब भी यही होगा।

1 केजी एलपीजी गैस = 45 मेगाजूल एनर्जी

और एक 14 केजी के सिलेंडर की कीमत है लगभग 850 रुपए

इस हिसाब से आपको 1 केजी गैस के लिए चुकाने पड़ेंगे 60 रुपए

मतलब 45 मेगाजुल एनर्जी के लिए 60 रुपए लगभग

अब आते हैं इंडक्शन चूल्हे पर

1 kilowat-hour = 3.6 मेगाजुल एनर्जी

1 KWH = 1 यूनिट बिजली

अगर बिजली की कीमत 5 रुपए प्रति यूनिट मानी जाए

तो 60 रुपए में 12 यूनिट बिजली खरीदी जा सकती है।

तो 12 यूनिट बिजली = 43.2 मेगाजुल एनर्जी

तो आपने देखा 60 रुपए में गैस 45 और इंडक्शन 43.2 मेगाजूल एनर्जी देता है।

तो आप देखिए कि अगर आपके यहां बिजली की कीमत 5 रुपए प्रति यूनिट से कम है तो आप इंडक्शन चूल्हा जला सकते हैं। या फिर अगर गैस की कीमत आपके यहां कम है तब भी।

और वैसे मुझे नहीं लगता कि कहीं भी 5 रुपए से कम बिजली है। और ये 5 रुपए प्रति यूनिट भी 150 यूनिट तक बिजली खर्च होती है तब के लिए है, इसके ऊपर खर्च हो जाने पर ये 5.5 रुपए प्रति यूनिट हो जाती है और 200 और 250…. ऐसे ही आगे रेट बढ़ते रहते हैं।

बाकी इंडक्शन चूल्हे के फायदे तो आप जानते ही होंगे।

  • इसमें बर्तन काले नहीं होते
  • करंट लगने का कोई चक्कर नहीं
  • कम पर या ज्यादा पर आसानी से चला सकते हैं
  • टाइमर भी लगा सकते हैं
  • पर आपको स्टील /लोहे के बर्तन ही प्रयोग करने पड़ेंगे।
  • रोटी नहीं बना सकते
  • बिजली आने का इंतजार करना पड़ेगा

और अगर आयुर्वेद की दृष्टि से देखा जाए तो भी गैस का झूला ही ज्यादा बेहतर है इंडक्शन कुकर की अपेक्षा है क्योंकि खाना जितनी देर तक और धीरे-धीरे पके उतना ही उचित होता है खाने को अगर तुरंत ही पका लिया जाए तो उसके पोषक तत्व वह नहीं प्राप्त होते हैं इसलिए खाने को पर्याप्त आच पर ही पकाना चाहिए ।

इंडक्शन पर किरणों द्वारा खाने को तुरंत गर्म कर दिया जाता है जो कि बिल्कुल उचित नहीं है और खाना है बिल्कुल पोषक रहित रहता है उस खाने से कोई लाभ नहीं होता ।

अतः अगर आप यूज करें तो गैस का चुला ही यूज करें वह भी बेहतर नहीं है परंतु अगर इन दोनों की तुलना की जाए तो गैस का चूल्हा बहतर है

UPS and INVERTER complete detail with diffrence

Difference between UPS and Inverter:

 

Comparison of  UPS and Inverter
DescriptionsUPSInverter
DefinitionUPS means Uninterruptable Power Supply.Inverter is a device which converts DC electricity to AC
Functionयह एक विद्युत परिपथ (उपकरण) है जो किसी गैजेट के लिए तुरंत विद्युत आपूर्ति का बैकअप लेता है। गैजेट्स का काम सुचारू रूप से चलता रहता है और इससे कोई नुकसान नहीं होता है।इन्वर्टर में सर्किटरी होती है जो एसी को डीसी में परिवर्तित करती है और बैटरी में स्टोर करती है। जब बिजली की आपूर्ति बंद हो जाती है, तो वह डीसी बिजली वापस एसी में बदल जाती है और संबंधित इलेक्ट्रॉनिक गैजेट को प्रेषित कर दी जाती है।
PrinciplesIt first converts AC to DC Power to charge the battery than Convert DC Power to AC Power (Inverter) and this AC power is supplied to Load. However, UPS monitors the input voltage level and processes it in terms of voltage regulations.

UPS= Battery charger + Inverter

Inverter converts DC power (stored in its battery) to AC Power supplied to the devices. Normally AC Power charges the battery .It uses relays and sensors to detect when to use DC power or AC Power, for DC power.
Back up TimePower Back up for Short DurationPower Back up for Long Duration
Types(a) Offline UPS, (b) Online UPS and (c) Line-interactive UPS.

 

(a) Square Wave, (b) Quasi Wave,

(c) Sine Wave

Main PartRectifier/charger, Inverter ,controllerInverter and controller.
Switch over Time3 to 8 milliseconds.500 milliseconds.
Voltage Fluctuations
जबकि इनपुट आपूर्ति में वोल्टेज के उतार-चढ़ाव को यूपीएस द्वारा समायोजित किया जा सकता है, आउटपुट वोल्टेज जितना संभव हो उतना सुचारू होना चाहते हैं। वोल्टेज आउटपुट को सुचारू करने में, इन्वर्टर की तुलना में यूपीएस को बेहतर माना जाता है।

 

इन्वर्टर वोल्टेज के उतार-चढ़ाव से सुरक्षा नहीं देता
Circuitry SophisticationUPS circuitry is far more sophisticated than that of inverter’sइन्वर्टर में सिंपल सर्किट होता है
PricingUPS more expensive than an inverter.Inverter is less expensive than UPS
ApplicationUPS are used for electronics Application such as computer, servers, Network Switches, workstations, Medical Equipment, Processing Equipment which perform critical task and cannot tolerate delays in power supply.Inverters are preferred more for general electric Application which working does not affected by extended delays in power supply.
ProtectionUPS provide protection against voltage spikes, voltage drops, instability of the main frequency and harmonic distortionsइन्वर्टर लाइन असामान्यताओं से सुरक्षा प्रदान नहीं करता है।
BatteryUsed sealed maintenance free (SMF) batteryUsed flat plate or tubular battery
Battery MaintenanceDo not require any maintenance.निरंतर रखरखाव की आवश्यकता होती है, समय के नियमित अंतराल पर आसुत जल टॉपिंग भरने की आवश्यकता होती है
Energy Consumptionलगातार बैटरी चार्ज होने के कारण अधिक
कम

Conclusion:

यूपीएस और इन्वर्टर दोनों ही विद्युत प्रणाली को बैकअप आपूर्ति प्रदान करते हैं। UPS और इन्वर्टर के बीच दो प्रमुख अंतर हैं: 
मुख्य आपूर्ति से बैटरी में यूपीएस का स्विचिंग बहुत तत्काल है इसलिए इसका उपयोग महत्वपूर्ण या महत्वपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों की बैकअप शक्ति प्रदान करने के लिए किया जाता है। जबकि इन्वर्टर में मुख्य आपूर्ति से बैटरी में स्विच करने में समय लगता है इसलिए यह कम महत्वपूर्ण विद्युत उपकरण प्रदान करता था। 

यूपीएस स्पाइक, वोल्टेज में उतार-चढ़ाव, शोर के खिलाफ लोड को सुरक्षा प्रदान करता है जबकि इन्वर्टर लोड को कोई सुरक्षा प्रदान नहीं करता है।


Solar plate calculation for Home, Office and building.

विद्युत भार का अनुसरण करने के लिए सौर पैनल के आकार, सौर पैनल की संख्या और इन्वर्टर के आकार की गणना करें |

Electrical Load Detail:


8 घंटे / दिन के लिए 100W कंप्यूटर - 1 उपयोग 


8 घंटे / दिन के लिए 60W फैन  -  2 उपयोग 


 8 घंटे / दिन के लिए 100W सीएफएल लाइट - 1 उपयोग 


Solar System Detail:



सौर प्रणाली वोल्टेज (बैटरी बैंक के अनुसार) = 48 V डीसी


 ढीले तारों कनेक्शन फैक्टर = 20% 


 गर्मियों में दैनिक धूप का समय = 6 घंटे / दिन 


 सर्दियों में दैनिक धूप का समय = 4.5 घंटे / दिन 


 मानसून में दैनिक धूप का समय = 4 घंटे / दिन


Inverter Detail:


भविष्य का भार विस्तार कारक = 10%

 इन्वर्टर दक्षता = 80%

 इन्वर्टर पावर फैक्टर = 0.8



Step-1: Calculate Electrical Usages per Day


कंप्यूटर के लिए बिजली की खपत = कोई एक्स वाट एक्स का उपयोग घंटे / दिन 

 कंप्यूटर के लिए बिजली की खपत = 1x100x8 = 800 वाट प्रति दिन / दिन 


 पंखे के लिए बिजली की खपत 

 पंखे के लिए बिजली की खपत = 2x60x8 = 960 वाट प्रति दिन / दिन


 CFL लाइट के लिए बिजली की खपत = No. x वाट x का उपयोग घंटे / दिन

 सीएफएल लाइट के लिए बिजली की खपत = 1x100x8 = 800 वाट प्रति दिन / दिन 


 कुल विद्युत भार = 800 + 960 + 800 = 2560 वाट प्रति दिन



Step-2: Calculate Solar Panel Size

औसत सनशाइन घंटे = गर्मियों में दैनिक धूप घंटे + सर्दियों + मानसून / 3 

औसत धूप घंटे = 6 + 4.5 + 4/3 = 4.8 घंटे कुल विद्युत भार = 2560 वाट प्रति दिन 

सौर पैनल का आवश्यक आकार = (विद्युत भार / औसत धूप) एक्स सुधार कारक

 सौर पैनल का आवश्यक आकार = (2560 / 4.8) x 1.2 = 635.6 वाट 

सौर पैनल का आवश्यक आकार = 635.6 वाट


Step-3: Calculate No of Solar Panel/Array of Solar Panel

यदि हम 250-वाट, श्रृंखला-समानांतर प्रकार के कनेक्शन में 24V सौर पैनल का उपयोग करते हैं 

श्रृंखला-समानांतर कनेक्शन में क्षमता (वाट) और वोल्ट दोनों बढ़ जाते हैं 

सौर पैनल के स्ट्रिंग की संख्या (वाट) = सौर पैनल का आकार / प्रत्येक पैनल की क्षमता

 सोलर पैनल की स्ट्रिंग की संख्या (वाट) = 635.6 / 250 = 2.5 Nos. ~ 3 Nos.

 प्रत्येक स्ट्रिंग में सौर पैनल की संख्या = सौर प्रणाली वोल्ट / प्रत्येक सौर पैनल वोल्ट 

प्रत्येक स्ट्रिंग में सौर पैनल की संख्या = 48/24 = 2 Nos.

सोलर पैनल की कुल संख्या = प्रत्येक पैनल में सोलर पैनल की संख्या 

 सोलर पैनल की कुल संख्या = 3 × 2 = 6 Nos.

सोलर पैनल की कुल संख्या = 6 Nos.

Step-4: Calculate Electrical Load:

कंप्यूटर के लिए लोड करें =  Nos x वाट 

कंप्यूटर के लिए लोड = 1 × 100 = 100 वाट 

फैन के लिए लोड =  Nos x वाट 
फैन के लिए लोड = 2 × 60 = 120 वाट 

CFL लाइट के लिए लोड करें = Nos. x वाट 
CFL लाइट = 1 × 100 = 100 वाट 

 कुल विद्युत भार = 100 + 120 + 100 = 320 वाट



Step-5: Calculate Size of Inverter:


वाट में कुल विद्युत भार = 320 वाट 

VA = Watt /P.F में कुल विद्युत भार VA में 

कुल विद्युत भार = 320 / 0.8 = 400VA

 इन्वर्टर का आकार = कुल लोड x सुधार कारक / दक्षता 

इन्वर्टर का आकार = 320 x 1.2 / 80% = 440 वाट 

इन्वर्टर का आकार = 400 x 1.2 / 80% = 600 VA

इन्वर्टर का आकार = 440 वाट या 600 VA

Summary:

सौर पैनल का आवश्यक आकार = 635.6 वाट 

प्रत्येक सौर पैनल का आकार = 250 वाट। 12 V

सौर पैनल के स्ट्रिंग की संख्या = 3 Nos.

प्रत्येक स्ट्रिंग = 2 Nos.

सौर पैनल की संख्या सोलर पैनल की कुल संख्या = 6 Nos.

सौर पैनल का कुल आकार = 750 वाट 

इन्वर्टर का आकार = 440 वाट या 600 VA




क्या आप पब्लिक स्पीकिंग व लोगों से बात करने के डर को दूर करने का मनोवैज्ञानिक तरीका क्या हैं ?


इस प्रश्न के अंदर दो प्रश्न छुपे हुए हैं और दोनों का अलग अलग उत्तर है।
  • अगर आपको बहुत से लोगों के सामने बात करने में डर लगे तो इसको स्टेज फ्राइट कहते हैं। हो सकता है यह आपको अपनी क्लास के सामने हो या किसी भीड़ के सामने। इसमें संख्या का बहुत असर पड़ता है। बहुत से लोग कुछ लोगों के सामने उतने भयभीत नहीं होते लेकिन जब संख्या अधिक हो जाती है तो बहुत डर जाते हैं।
  • अगर आपको किसी अजनबी से बात करने में परेशानी हो तो यह स्टेज फ्राइट से अलग है। कुछ लोग इसको शर्म के नाम से जानते हैं तो कुछ लोग संकोच के नाम से। कुछ लोग ऐसे लोगों की इंट्रोवर्ट यानि की अंतर्मुखी कहते हैं जो कि गलत है ।
हम आपको दोनों के बारे में बताते हैं की ऐसा क्यों होगा है और मनोविज्ञान के हिसाब से इसका क्या उपचार है।
स्टेज फ्राइट: हमको खुद स्टेज फ्राइट है और हमने खुद इसपर काबू पाया है क्योंकि हमको अपनी नौकरी की वजह से बहुत से प्रजेंटेशन देना पड़ता है। लेकिन हम कभी कभी अजनबी लोगों से पहली मुलाक़ात में ही मिलने पर उनका सर खाने लगते हैं। इसलिए ये दोनों अलग अलग हैं।
चलिए हम स्टेज फ्राइट के बारे में जानकारी देते हैं।
स्टेज फ्राइट कब होता है: स्टेज फ्राइट सिर्फ बात करते वक्त ही नहीं बल्कि अगर आपको भीड़ से सामने नाचना हो, या गाना हो, या कोई वाद्य यंत्र बजाना हो, या सीटी ही मारनी हो, तब भी हो सकता है।
स्टेज फ्राइट क्यों होता है: स्टेज फ्राइट का सम्बन्ध हमारी विकासशीलता से है। जब हमारे पूर्वज किसी खतरे वाली चीज जैसे की शेर को देखते थे तो उनके तीन रिएक्शन होते थे।
  • वहां से भागकर अपनी जान बचाएं।
  • वहीँ पर फ्रीज़ हो जाएँ और कुछ नहीं करें।
  • शेर से लड़ें और उसका मुक़ाबला करें।
मनोविज्ञान में इसको फाइट या फ्लाइट रिस्पांस कहते हैं। यानि की लड़ो या भागो। यह प्रक्रिया कुछ इस प्रकार होती है और इसकी शुरुआत हमारे दिमाग के लिम्बिक सिस्टम में उत्पन्न होती है।

इस वक्त इस क्रम से सब होता है।
  • हमारे दिमाग के प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स को खतरे का आभास होता है। इसको सूचना हमारे लिम्बिक सिस्टम के अमिग्डला को पहले मिलती है फिर हाइपोथैलमस को मिलती है।
  • हाइपोथैलमस हमारे शारीर में एड्रनलीन और कोर्टिजोल नामक दो हार्मोन रिलीज़ करने का काम करता है। जब आप रोलर कोस्टर में बैठ के डरते हैं तब भी यही होता है।
  • इसकी वजह से आपका शारीर आपके खून में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ाता है जिससे आपको ऊर्जा का आभास होता है।
  • आपके दिल की धड़कने तीज हो जाती हैं।
  • आपके हाथ पाँव कापने लगते हैं।
  • आपका चेहरा सफ़ेद पड़ जाता है।
  • आपका मुंह सूख जाता है।
यही बात स्टेज फ्राइट के वक्त भी बहुत लोगों को होती है। स्टेज फ्राइट के वक्त हमारे अंदर एक लोगों के प्रतिक्रिया की चिंता होती है जो डर का रूप ले लेती है। फिर बाकी प्रक्रिया ठीक ऐसे होती है जैसे हमने ऊपर बताया है।
स्टेज फ्राइट से कैसे निपटे: यह बहुत लोगों को होता है इसलिए आपको चिंता करने की जरूरत नहीं की आप अकेले ऐसे इंसान हैं। हमारे हिसाब से यह सब करने से धीरे धीरे यह भय कम होता है।
  • आपको जो भी बोलना हो उसकी पहले से तयारी करें और जानकारी बढ़ाएं । अगर जानकारी नहीं होगी तो आपको एक डर लगेगा कि और आत्मविश्वास की कमी होगी । सबसे महत्वपूर्ण इलाज़ का भाग यही है।
  • आप जब बात कर रहे हैं तो लोगों से आँखों मिलाकर बात कीजिये। उससे आपको एक सहजता का एहसास होगा की कोई आपको काटने नहीं आया है।
  • आप ऐसे मत सोचिये की सब लोग आपकी कमियों पर ध्यान दे रहे हैं। इसको स्पॉटलाइट इफ़ेक्ट कहते हैं और हमने इसे यहाँ समझाया है 
  • इसकी जितनी हो सके उतनी प्रैक्टिस कीजिये। कभी कभी आप आईने के सामने खड़े होकर प्रैक्टिस कर सकते हैं।
  • ध्यान कीजिये। जी हाँ, इससे आपके प्रीफ्रंटल कोर्टेक्स में इस पर काबू करने की शक्ति मिलेगी।
बहुत लोगों को ये होता है। किसी को कम तो किसी को ज्यादा। बस मेहनत करके ही इससे उबर सकते हैं।

सामाजिक चिंता विकार : अब हम इस प्रश्न के दूसरे भाग पर आते हैं। कुछ लोग इसको अंतर्मुखी लोगों से मिलाते हैं लेकिन वो गलत है। असल में शर्मीलापन एक सामाजिक चिंता विकार है। ऐसे लोग औरों से बात करना चाहते हैं लेकिन इस डर की वजह से नहीं कर पते। अंतर्मुखी लोग अपने आप में मग्न रहते हैं और उनको अजनबी लोगों का साथ पसंद नहीं होता। दोनों के अंतर को बहुत कम लोग समझते हैं।
सामाजिक चिंता विकार क्यों होता है: असल में इसपर आपके पालन पोषण का और आपकी संस्कृति का सबसे बड़ा असर पड़ता है। कुछ भाग तो जन्मजात होता है लेकिन इसका सबसे बड़ा हिस्सा पालन पोषण से सम्बंधित है। बचपन में लोग आपसे कैसा व्यवहार करते हैं यही सबसे मुख्य कारण है इसका।
सामाजिक चिंता विकार वाले लोगों को कैसा लगता है: असल में शर्मीले लोग अजनबी लोगों से बात करना चाहते है लेकिन बात करने के वक्त उनको एक सामजिक चिंता घेर लेती है। किसी को लगेगा की धरती फट जाये और हम इसमें समा जाएँ।

कुछ लोगों को लैंगिक हिसाब से यह विकार होता है। अगर आपने द बिग बैंग थ्योरी देखी है तो उसमे राज का पत्र निभाने वाले को लड़कियों से बात करने की चिंता है। इनको लड़कों से बात करने में कोई समस्या नहीं है लेकिन लड़कियों से बात करने में प्रॉब्लम होती है।
हालांकि यह एक टीवी शो है लेकिन असल में भी होता है। और इसका जिम्मेदार हमारा पालन पोषण और हमारा समाज है जो बहुत से देशों में लड़को और लड़कियों को बातचीत से भी दूर रखता है।
सामाजिक चिंता विकार का इलाज़ क्या है : असल में मनोविज्ञान में इसको एक बिमारी माना जाता है। और इसका िलास कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी से कर सकते हैं। इसके लिए आप किसी मनोचिकिस्तक से मिल कर इसका इलाज़ करवा सकते हैं। इसके लिए आपको प्रैक्टिस करनी होगी। आप अजनबी लोगों लोगों से मिल जुल कर यह डर कम कर सकते हैं। एक बार आपको लगेगा की लोग आपको खा नहीं जायेंगें तो यह डर अपने आप कम होने लगेगा।